Friday, January 21, 2011

लेखनी की धार कुंद क्यों ?

मैं जब बहुत छोटा था तो मैंने पढ़ा था की " कलम की ताकत तलवार से कही ज्यादा मारक होती है" आज हजारों समाचार पत्र है और लाखों लोगों के द्वारा यह समाचार तैयार किया जाता है. पर शायद आज भारतीय जनमानस में यह बात घर कर गई है की फला समाचार पत्र फला सरकार का करीबी है और फला समाचार पत्र फला सरकार का. क्या हो गया है आज नेहरु और गाँधी के देश कों जहाँ आज आप अपने मन की सच्चाई कों बयां नहीं कर सकते.
आरुशी हत्याकांड, आदर्श सोसाइटी घोटाला, शशि बलात्कार काण्ड और ना जाने कितने और केसेस जिन्हें शायद हमारे आँखों के सामने आने के पहले ही गला घोंट दिया जाता है. अगर किसी ने कोशिस भी की तो पुलिस और सरकारी गुंडे उन्हें परेशान करने लगते है. हर नेता ने अपने चमचे पाल रखे है. ताकि उन पर कोई आंच आने से पहले उनके चमचे उन लोगों की उँगलियाँ तोड़ सकें जो उनके नेता के दामन पर उठ रही है .........
ऐसा कब तक चलेगा? क्या इमानदार होने का भी प्रमाणपत्र अब सरकार दिया करेगी? उत्तर प्रदेश में एक नाबालिग लड़की के बलात्कार के बाद उस पर झूठी चोरी का मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है और कहा जाता है लड़की ने चोरी किया . शुरुवात में कही कोई सुनवाई नहीं होती. अगर कल के दिन वो " फूलन देवी " बनकर अपना बदला लेने अगर उठ कड़ी होती है तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि एक महिला के शाशन काल में एक दलित लड़की की अस्मिता पर उसी शाषक महिला का ख़ास सिपहसालार हमला बोल देता है और सरकार ३३ दिन तक हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई थी यह क्यों हुआ? इसके दोषी कौन है?
क्या आज के दिन उस लड़की की ज़िन्दगी में जो कडवाहट आ गई है कोई उसे मिटा सकता है? कहा है क़ानून? और कहा है उसके रखवाले. क्या रखवाले ऐसे ही होते है की पीड़ित कों इन्साफ देने के बजाय दुष्कर्मी का साथ दें.
निलंबन किसी समस्या का समाधान नहीं है. मैं अपने २६ साल ke जीवन में करीब २६०० ऐसी घटनाओं कों जानता हूँ जहा निलंबन हुआ, बंद लाइन हाज़िर हुआ और अगले कुछ दिनों में उसे पुनः वही या उससे ऊपर की कुर्शी दे दी गई. आज राजनीती ने साड़ी नीतियों का लोप कर दिया है. न्याय की तलाश में व्यक्ति अदालत तक पहुच जाए तो भी यह व्यक्ति का भाग्य है और अदालतों में मिलती है " तारीख" आज हमारा तंत्र ऐसा हो गया है की दफ्तर का चपरासी भी बगैर रिश्वत लिए फाइल आगे नहीं बढ़ाता लोग कहते है की फाइलों के पैर लगाने पड़ते है वो भी पैसों के पैर. बगैर पैसों के आज कुछ नहीं हो सकता....
हाय रे पैसा...........................
आज का युवा वर्ग आक्रोशित है पर उसे लगता है की कही आक्रोश में कही गई बात कही उसका या उसके किसी सगे सम्बन्धियों का आहित न कर दे सो शांत बैठा है. आज किसी की बहु बेटी की इज्ज़त की बात है कल हमारे घर की बात होगी और परसों आपके...... क्या सोचा है आपने अपने घर तक ये आग पहुचे तब तक इंतज़ार करेंगे या ...................?
********** फैसला आपका क्योंकि ज़िन्दगी और लोग आपके***********
आपका आदर्श प्रतापगढ़ी

Saturday, December 11, 2010

हम तुम और नेताजी

man is the only creature of god who has the choice between the pairs of two - violence & non- violence ; love & hate ;peace & war ; good & bad / sin .
Sir but it is the nature of tiger that he is violent. God gave him only the such structure that he may not alive on the grass so for his own life he kills and eats his prey.
Human even not eats human but kill. How strange it is. All the human being knew this fact but what can do ? Now the fact behind these things may be as per my view is
"Selfishness"
यह मेरा बेटा है यह मेरी बेटी है मानव तो इसमें ही मरता रहता है . ऊपर वाला तो कभी ये नहीं कहता की ये मेरे पुत्रगण है. यह दुर्गुण मात्र इंसान में ही है. शायद इसीलिए इंसानों कों " सामाजिक जानवर " की संज्ञा दी गई है.
आज के इस भौतिकवादी दौर में जब मैं सुबह पेपर उठा कर देखता हूँ तो मुझे लगता है प्रतिदिन लगभग लखनऊ शहर में ही कम से कम २० लोगों के साथ हत्या /लूट/ अपहरण/छेड़खानी/दुर्व्यवहार आदि की खबरें आती है . यह मात्र एक अखबार की बात है जो की मुख्या बातों कों ही जान पाते है. सच्चाई इससे बहुत आगे हो सकती है.
समाज इतना भ्रष्ट हो गया है की देश हित से भी सम्बंधित खबर " वाराणसी बम्ब ब्लास्ट " भी अगर कोई व्यक्ति हाथरस में देने गया तो थाने का एक मुंशी ५० रुपये लेकर उसे रद्दी की टोकरी में ड़ाल दिया. यह देशभक्ति है दोनों की उस पुलिस वाले की भी और उस व्यक्ति की भी जिसने इस खबर कों एक दिन पहले ही हाथरस पुलिस कों बता दिया. आज देशभक्ति का पाठ मात्र ट्रेनिंग में ही पढाया जाता है बाकी तो आप देख ही रहे है
यह आज का समाज है .
एक कवि की कविता की दो पंक्तियाँ
" एक आदमी न तो रोटी बेलता है और न ही सेंकता है
यह तो रोटी से खेलता है
यह व्यक्ति कौन है
मेरे देश की संसद क्यों मौन है ?"

कोई खबर नई नहीं है. देश का महत्वपूर्ण समय और पैसा इसलिए बर्बाद किया जा रहा है की कौन सा घोटाला किसके राज में हुआ? समस्या का कारण जानने के लिए एक आयोग फिर उसपे लीपापोती करने के लिए दूसरा आयोंग. यह हमारे देश का दुर्भाग्य है की " भारत जैसे देश में जहाँ कलक्टर से चपरासी बनने तक के लिए योग्यता की आवश्यकता होती है वहीँ पर देश में नेता (जो की देश कों चलाते हैं ) वह बनने के लिए अंगूठा छाप होना भी चलता है.
हाय रे देश का दुर्भाग्य.
घोटालों का नित नए आयाम बन रहे है. कलमाड़ी ने ज्यादा पैसा खा लिया मुझे तो मौका ही नहीं मिल पाया शायद इसीलिए लोग कीचड उछालने से भी नहीं परहेज़ कर रहे है. घोटालों से घटा मात्र जनता का होता है . नेताओं का नहीं. उनके बच्चे ऑक्सफोर्ड में पढ़ते है और हमारे सरकारी स्कूल में . उनके बच्चे पिज्जा खाते है और मर्सीडीज़ में घूमते है. और हमारे धुल में रेंगते है? यह असमानता क्यों?????

जब हम मेहनतकश है टैक्स देते है और अपना कर्त्तव्य पूरा करते है तो ये क्यों है की आज हमारे पास पैसा क्यों नहीं है? क्या मेहनत की कमी केवल टैक्स भरने के लिए ही करनी है? क्या हम जीवन भर मात्र दो जून की रोटी के लिए संघर्ष करते रहेंगे और ये नेता और नौकरशाह मिलकर हमारी रगों कों दीमक की चाटते रहेंगे? आखिर कब तक?
गुरुदेव आप बताइए की इसमें मेरा क्या दोष है की मैं भारतवर्ष में पैदा हुआ हूँ जो कभी महराज हर्षवर्धन और सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की धरती थी और आज यह घोटालेबाजों की धरती बन गई है.
आज मेरे देश की संसद मौन क्यों है ? मेरे देश की संसद बताये की घोतालेबाज़ कौन है? उसके लिए क्या सजा है और क्या कभी ये सजा उसे हो पाएगी ?
वेतन और भत्ता बढाने पर एकमत होने वाले सांसदों आप लोग चुप क्यों है? कुछ उत्तर है आपके पास . अगर है तो सोचो .....करो और लड़ो भ्रस्टाचार
जय हिंद।
जारी...............
आज इतना भी समय नहीं है कों लोग देश के बारे में सोचे या देश हित की चर्चा करें॥ अरे भाई आजकल तो चुनाव का समय चल रहा है तो चुनाव की चर्चा में समय व्यतीत करना उचित रहने लगा है अब एक नेताजी कों चस्का लगा है की वो जिला पंचायत अध्यक्ष बनकर ही दम लेंगे। मैं भी जानता हूँ की ये खाऊ पद है और इसमें नेताजी अपने सारे चेलों चपाटों कों कहीं न कहीं सेटल कर देंगे। गाँधी जी आ अपमान हो रहा है दिन पर दिन गाँधी के इस देश में भांति भांति की लोग है और वो गाँधीजी ( धन ) कों मदिरा हेतु इस्तेमाल कर रहे है।
यह मेरी टिपण्णी कुछ लोगों कों नागवार गुज़र सकती है पर मैं क्या करूँ
क्या सच बोलना इस देश में गैरकानूनी है?